बाबा भीम राव अम्बेडकर संविधान सभा तक कैसे पहुंचे

बाबा भीम राव अम्बेडकर संविधान सभा तक कैसे पहुंचे जानिए इसकी सच्चाई!

● दलित व ओबीसी नेता अकेले चुनाव लड़ कर न तो संविधान बचा सकते है ना ही अपने अधिकार
●धर्म बदलने से कुछ नहीं जब तक अपनी सोच न बदलें वंचित समाज

असलम परवेज़, वरिष्ठ पत्रकार

आज़ादी के बाद से देश में जितने भी दलित नेता हुए सबने अपने समाज से मुस्लिम समाज की यह सच्चाई छुपाई कि बाबा साहब अम्बेडकर को संविधान सभा मे पहुचाने के लिए मुस्लिम समाज ने कितनी बड़ी कुर्बानी दी ।

जब संविधान सभा के चुनाव हुए तब बाबा साहब पुणे से चुनाव हार गए थे। वहा कांग्रेस ने उनके खिलाफ उनके ही सचिव को उनके खिलाफ चुनाव लड़वा दिया था। मुस्लिम लीग ने बाबा साहब अम्बेडकर का साथ दिया तब पश्चिम बंगाल के 48 प्रतिशत मुसलमानो ने बंगाल से एक तरफ़ा वोट देकर बाबा भीम राव अम्बेडकर को जिताया था । अगर बंगाल का मुसलमान वोट नही करता तो बाबा साहब संविधान निर्माता तो दूर की बात है संविधान सभा मे घुस भी न पाते।

आगे क्या हुआ जानिए लन्दन में गोल मेज कांफ्रेंस हुआ तब भी ( बाबा साहब के प्रपौत्र राजरतन के मुताबिक ) गांधी व नेहरू ने आगा खान व जिन्ना को बुला कर कहा था कि हर बात आपकी मानी जायेगी डेलिगेशन कांफ्रेंस के दौरान बाबा साहब का खुलकर विरोध करे तो पूर्व की सारी सुविधाएं, उर्दू को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा व सरकारी नौकरियों में आरक्षण 37 प्रतिशत जो अंग्रेजो ने दिए हैं उसे बरकरार रखा जाएगा ।

लेकिन मुस्लिम डेलिगेशन ने गांधी व नेहरू के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया तो वहाँ भी कांग्रेस ने अपनी कूटनीतिक चाल चली और नौकरियों, लोकसभा व विधानसभा में दलितों को आरक्षण दे दिया और मुसलमानों की सारी सुविधाएं समाप्त कर दी। यहाँ तक संविधानम की धारा 341 में संशोधन कर जो दलितों के लिए था उसे सिर्फ हिन्दू धर्म के दलितों के लिए कर दिया गया जिसमें मुस्लिम समाज मे जो सफ़ाई सुथराई का काम करते हैं ( मुस्लिम दलित ) वह इस आरक्षण से वंचित हो गए ।

ये सारी बातें न जो हुईं न जगजीवन राम, न रामविलास पासवान न मायावती समेत किसी भी दलित नेता ने अपने समाज को यह सच्चाई नही बताई । अगर यह सच्चाई दलित समाज को मालूम होती तो हिंदु मुस्लिम करने वालों के शाजिश का हिस्सा न बनते न किसी दंगे में शामिल होते।

● RSS ने आज़ादी के बाद से ही दलित व पिछड़ो में मुसलमानों के खिलाफ़ नफरत भरना शुरू कर दिया था।

संघ तो चाहता था कि भारत का एक एक मुसलमान देश छोड़ कर पाकिस्तान चला जाय ताकि आसानी से दलितों व पिछड़ो को गुलाम बनाकर रखा जा सके उनका शोषण करना आसान नहीं होगा जब तक मुसलमान भारत में रहेंगे। लेकिन जब मुसलमानो ने भारत को ही अपना देश मान पाकिस्तान जाने से इनकार कर दिया तो संघ के मंसूबों पर पानी फिर गया और देश भर में हिन्दू मुसलमान दंगे होने लगे इन दंगों में मुसलमानों के खिलाफ दलित व पिछड़ो को आगे किया जाता रहा जो आज भी जारी है। इस बात को पढ़े लिखे लोग खूब समझते हैं।

● संविधान बचाने के लिए दलितों को धर्म के साथ साथ अपनी सोच भी बदलनी होगी ।

RSS कभी नही चाहती कि दलित मुसलमान एक हो ऐसा जिस दिन हो जाएगा दलित व मुसलमान दोनों को केंद्र की सत्ता पर काबिज होने से कोई नही रोक सकता। लालू से टकराव के बाद रामविलास पासवान की भाजपा से दोस्ती हुई और उत्तर प्रदेश में 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद बसपा भाजपा से हाथ मिलाया। 2002 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी को सबसे बड़े दल होने के बावजूद केंद्र की अटल विहारी की सरकार ने मुलायम की जगह मायावती को मुख्यमंत्री बनवा दिया। उसके बाद मुलायम सिंह भी संघ के दबाव में आ गए। लालू यादव की चारा घोटाले में गिरफ्तारी व सजा होने के बाद तेजस्वी यादव भी भाजपा के कब्जे में गए। जांच के डर से उत्तर प्रदेश में 2012 से 2017 तक पूर्ण बहुमत होने के बावजूद अखिलेश यादव ने भी मुलमानों पर हुए ज़ुल्म के खिलाफ एक शब्द बोलना मुनासिब नही समझा और आज़ तक खामोश है।

आज भाजपा को सत्ता से हटाने की बात इनमे से कोई नही कर रहा है। सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वालो में कोई न तो मजबूत दलित नेता हैं नही ओबीसी नेता ।

धर्म के साथ साथ सोच बदलना होगा और अंध विश्वास और पाखंड से मुक्ति लेने के साथ साथ पाखंडियों की पहचान करना भी एक मुश्किल काम है यही पर मात खाती है देश की जानता।

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